मूलम्
पुत्रदारधनादीनां नाशे तात्कालिकी मतिः ।
धिक् संसारमितीदृक् स्याद् विरक्तेर्मन्दता हि सा ॥६॥
पुत्रदारधनादीनाम्- स्त्रीपुत्रादि सम्पत्तियोंका
नाशे- नाश होने पर
तात्कालिकी- तत्कालिक
मतिः- बुद्धि (जो)
धिक् संसारम् इति- यह जगत झूठा है
ईदृक- इस प्रकार की
स्याद्- हो तो वह
विरक्तेः- वैराग्यकी
मन्दता- निकृष्टता है ।
भावार्थ-
स्त्रीपुत्रादि सम्पत्तियोंके नाश होने पर जब व्यक्ति संसार झूठा है ऐसा समझकर थोडे समयके लिए उसके प्रति विरक्त हो जाता है तो यह मन्द प्रकार का वैराग्य कहलाता है ।
मूलम्
अस्मिन् जन्मनि मा भूवन् पुत्रदारादयो मम ।
इति या सुस्थिरा बुद्धिः सा वैराग्यस्य तीव्रता ॥७॥
अस्मिन- इस
जन्मनि- जन्ममें
मा भूवन्- न हों
पुत्रदारादयोः- स्त्रीपुत्रादि
मम- मेरे ।
इति- ऐसा
या- जो
सुस्थिराः- दृढ
बुद्धिः- बुद्धि
सा- वह
वैराग्यस्य- वैराग्यकी
तीव्रता- तीव्रता है । तीव्र वैराग्य है ।
भावार्थ
इस जन्ममें मेरे कोई स्त्रीपुत्रादि सम्पत्ती नहीं हैं तो न ही हों ऐसी दृढमति हो जाये अर्थात् जीवनभर के लिए सभी प्रकारकी सुख सम्पत्तीयों से वैराग्य हो जाये तो वह तीव्र प्रकारका वैराग्य है ।
No comments :
Post a Comment