जीवन्मुक्तिविवेकः ३

मूलम् 
पुत्रदारधनादीनां नाशे तात्कालिकी मतिः ।
 धिक् संसारमितीदृक् स्याद् विरक्तेर्मन्दता हि सा ॥६॥

 शब्दार्थ-
 पुत्रदारधनादीनाम्- स्त्रीपुत्रादि सम्पत्तियोंका
 नाशे- नाश होने पर
 तात्कालिकी- तत्कालिक
 मतिः- बुद्धि (जो)
 धिक् संसारम् इति- यह जगत झूठा है
 ईदृक- इस प्रकार की
 स्याद्-  हो तो वह
 विरक्तेः- वैराग्यकी
 मन्दता- निकृष्टता है ।
 भावार्थ-
 स्त्रीपुत्रादि सम्पत्तियोंके नाश होने पर जब व्यक्ति संसार झूठा है ऐसा समझकर थोडे समयके लिए उसके प्रति विरक्त हो जाता है तो यह मन्द प्रकार का वैराग्य कहलाता है ।


मूलम् 
 अस्मिन् जन्मनि मा भूवन् पुत्रदारादयो मम ।
 इति या सुस्थिरा बुद्धिः सा वैराग्यस्य तीव्रता ॥७॥
 
 शब्दार्थ
अस्मिन-  इस
 जन्मनि- जन्ममें
 मा भूवन्-  न हों
 पुत्रदारादयोः- स्त्रीपुत्रादि
 मम- मेरे ।
 इति-  ऐसा
 या- जो
 सुस्थिराः- दृढ
 बुद्धिः- बुद्धि
 सा- वह
 वैराग्यस्य- वैराग्यकी
 तीव्रता- तीव्रता है । तीव्र वैराग्य है ।
 भावार्थ
 इस जन्ममें मेरे कोई स्त्रीपुत्रादि सम्पत्ती नहीं हैं तो न ही हों ऐसी दृढमति हो जाये अर्थात् जीवनभर के लिए सभी प्रकारकी सुख सम्पत्तीयों से वैराग्य हो जाये तो वह तीव्र प्रकारका वैराग्य है ।

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